Wednesday, May 14, 2008
Friday, May 9, 2008
भावनाये
भावनाओ का ज्वार जब उफ़नता हे तो बुद्दी कि शिलाये बालु कि रेत तरह खन्ड खन्ड होकर बिखर जाती हे .
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कुछ एसे कथन जो कही पडॆ सुने हे य अनायास ही मन मे उपज गये पर जिन्मे बडा गुड अर्थ छूपा हुआ हे .सिर्फ़ मेरी पसन्द के या मेरी सोच से